“माँ”
ख़ुद की कलम से….✍?
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मेरे बचपन के गलियारे में माँ ,
तुम तपोभूमि सी आँगन थी ।
मेरे सपनों के आयामो पर तुम ,
कर्मभूमि की आधार थी ।
जब मैं नन्हा-छोटा बच्चा था ,
तेरे गोद में मेरा सारा संसार समाया था ,
तेरा आँचल जैसे मुझ पर शीतल छाँव का साया था ।
मेरे उलझे वक्त को सुलझाते मैंने तुमको ही पाया है ,
हर सहमी सी अंधियारी में माँ ,
तेरे सीने से लगकर सोया है ।
चिंतन करता हूँ माँ , भूल कहाँ सकता हूं ,
मेरे परवरिश में तेरे उस त्याग को पीछे छोड़ कहाँ सकता हूँ ।
ममता की साक्ष्य है माँ , मेरा तू सौभाग्य है ,
नौ मास के भार पर भी तेरा मुझ पर ,
अपना सब कुछ जो त्याग है ।
चिंतन करता हूँ माँ , भूल कहाँ सकता हूं ,
तेरा मुझ पर जो उपकार है ,
उससे मुँह मोड़ नही मैं सकता हूँ….. !
……✍?
सूर्य प्रकाश सोनी