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1 Nov 2018 · 2 min read

माँ

माँ
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माँ तो बस माँ कहलाए हिरदय माल हमें बनाती है।
हर सांस अपनी कर कुर्बान जीवन जीवंत बनाती है।।

नेह उसका बरसे अपार बारिश की मस्त फुहारों सा,
गीष्म और ताप में सुखद मखमली अहसास जगा।
सावन के झूलों जैसी अपनी बाहुँ में वो झूलाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हिरदय माल हमें बनाती है।।

मत पूछो उसकी उदर पीड़ा जब आकार में ढलते,
रक्त उसका पीकर नव जीवन को हम धारण करते।
सतरंगी फूलों की फुलवारी सा हमको सजाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हिरदय माल हमें बनाती है।।

बार- बार गिर जाता जब वो ही माँ आ कर हमको,
उठा कर तब सहलाती और परेशान दिखाई देती।
पकड़ उँगली हमारी वो ही माँ तो हमको चलाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हिरदय माल हमें बनाती है।।

किशोरावस्था प्रस्फुटन में सद -असद को समझाना,
ज्ञान नैतिकता का दे सभ्य बनाए वो केवल माँ है।
नेक धीर बना हमको सुसंस्कृत भावों को जगाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हिरदय माल हमें बनाती है ।।

डा. मधु त्रिवेदी
आगरा (उत्तर प्रदेश)

रचनाकार का घोषणा पत्र-

यह मेरी स्वरचित एवं मौलिक रचना है जिसको प्रकाशित करने का कॉपीराइट मेरे पास है और मैं स्वेच्छा से इस रचना को साहित्यपीडिया की इस प्रतियोगिता में सम्मलित कर रही हूँ।

मैं साहित्यपीडिया को अपने संग्रह में इसे प्रकाशित करने का अधिकार प्रदान करती हूँ|

मैं इस प्रतियोगिता के सभी नियम एवं शर्तों से पूरी तरह सहमत हूँ। अगर मेरे द्वारा किसी नियम का उल्लंघन होता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी होगी।

साहित्यपीडिया के काव्य संग्रह में अपनी इस रचना के प्रकाशन के लिए मैं साहित्यपीडिया से किसी भी तरह के मानदेय या भेंट की पुस्तक प्रति की अधिकारी नहीं हूँ और न ही मैं इस प्रकार का कोई दावा कर्रुँगी|

अगर मेरे द्वारा दी गयी कोई भी सूचना ग़लत निकलती है या मेरी रचना किसी के कॉपीराइट का उल्लंघन करती है तो इसकी पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मेरी है; साहित्यपीडिया का इसमें कोई दायित्व नहीं होगा|

मैं समझती हूँ कि अगर मेरी रचना साहित्यपीडिया के नियमों के अनुसार नहीं हुई तो उसे इस प्रतियोगिता एवं काव्य संग्रह में शामिल नहीं किया जायेगा; रचना के प्रकाशन को लेकर साहित्यपीडिया टीम का निर्णय ही अंतिम होगा और मुझे वह निर्णय स्वीकार होगा|

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