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1 Apr 2024 · 1 min read

*माँ सरस्वती जी पर मुक्तक*

अति मोहक हैं बाल सुनहरे।
घने घने अति घने घनेरे।
लहराता ललाट पर सागर।
मार रहा है ज्ञान हिलोरे।

रस रस रस रस रस की रसिया।
मधुर सरस रस रसमय बतिया।
खिल खिल खिलकत पुलकित आनन।
बरबस खींचत सुघर सुरतिया।

मधु साहित्य सभ्य भाषा हो।
संत जनों की उरआशा हो।
बनी व्याकरण सत्य अनंतता।
भव्य ललित शिव परिभाषा हो।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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