माँ-ममता का खज़ाना
क्यूँ करता नादानी पगले अपनी माँ का हाल तो देख
भीग चुकी जो आँशुओ से उसकी गीली सॉल तो देख
तू सोचता है कि उसको तेरी फ़िकर नहीं
पर तु क्या जाने की तेरे सिवा उसकी कोई डगर नहीं
ममता के बोझ तले दबे सी गयी है
देख के मखमली अंधियारों को अब सी गयी है
अगर माँ न होती तो तेरा कोई मोल न होता
ग़र न होती ममता उसकी तो तू हीरा इक अनमोल न होता
आके इक पराये ने तेरा रंग बदला
था जो जन्म से ही उसने तेरा संग बदला
अरे तू क्या बस इक मोम का बूत है
जो इक पल में ही तेरा हर ढंग बदला
केवल इक माँ ही है इस जग में
जिसको तेरे दर्दों का अहसास तुझसे ज्यादा होता है
वही वो सुबह है
जिसमें उसकी थपकियों की चाय और गोद का प्याला होता है
और आज जब तू रहने लगा है इमारतों के मालों में
बंद करके रखता है उसको दरवाजों और तालों में
अरे भूल गया जिसने मांगी थी दर दर मन्नतें
कि भगवान मुझे इक लाल देदो
बचाये जो बुढ़ापे की सर्दियों से
ऐसी एक सॉल देदो
वो चली हर डगर चाहे कंकर हो चाहे पत्थर चाहे दर्द हो छालों में
तय किया हर सफर हर मंज़िल, गयी हो डगर चाहे नालों में
वो जब रोती है तो आँशुओ की धारा बहती है
फिर भी तेरे दिए दर्द को जान से प्यारा कहती है
बेटा तू सलामत रहे, तेरा जहां आबाद रहे
मेरी उम्र लग जाये तुझे हाथ लिए इकतारा कहती है
अरे याद कर वो दिन जब माँ न होगी
तेरे कही दूर जाने पर उसकी ना न होगी
जब तू कहेगा माँ मुझे लोरियां सुना दो,पर
अफसोस इसमें उसकी कोई हाँ न होगी
जब मारेगा ज़माना पत्थर
तो ढाल बना उसका आँचल न होगा
जब लोग फेकेंगे गर्दिशों का जादू
तो तेरे माथे पे उसका काज़ल न होगा
सुबह मेज़ पर चाय का प्याला तो होगा,लेकिन
तुझे जगाने को माँ के हाथों का स्पर्श न होगा
आवाज़ें तो बहोत आएंगी तेरे कानों में,मगर
अफ़सोस कि उनसे तेरा कोई संपर्क न होगा