*** ” माँ……..तूझे मैं क्या लिखूँ………!!! ” ***
*** प्रकृति की ,
अतुल्य रचना है तू ।
संस्कृति की ,
अनमोल संरचना है तू ।
जगत की ,
जनन बिंदु है तू ।
अनुपम ममता की ,
संसार और सिंधु है तू ।
चाँद-सूरज की ,
आधार और परिक्रमण बिंदु है तू ।
माँ……….!!! ,
तूझे अब मैं क्या लिखूँ……..!!!
*** तू अटल है ,
तू ही सकल है ।
तू अज़र है ,
केवल तू ही अमर है ।
तू ही जल है,
तू ही निर्मल है ।
तू ही शक्ति ,
तू ही प्रबल है ।
तू ही अपरिमित , तू ही असीम नील गगन है ,
तू ही मेरी अनमोल चमन है ।
तू ही गीत ,
तू ही अक्षुण्ण सरगम-संगीत ।
इस भव-भूतल में ,
केवल तू ही है ” अमृत ” ।
माँ………..!!! ,
तूझे अब मैं क्या लिखूँ……….!!!
*** तू ही पवित्र आत्मा की आधार ,
तू ही ” मनु ” सोंच की संसार ।
तू ही प्रेम , तू ही धर्म ;
तू ही कृति , तू ही कर्म ।
तू ही अमर तत्त्व ,
तू ही पृथ्वी-घूर्णन की जडत्व ।
और तू ही है मेरी सकल मर्म ।।
तू ही अज ( ब्रम्हा ) है ,
तू ही जलज है ।
तू ही है मंदिर की मूरत ,
तू ही है निर्मल गंगा से भी , खूबसूरत ।
तू ही रुप है , तू ही दीप-धूप ,
और तू ही है सकल स्वरुप ।
तू ही धूपों में , है सुकुन छाँव ,
तू ही है मेरी मन-सागर की इठलाती नाव ।
तू ही अप्रतिम आस है ,
तू ही मेरी अगम-विश्वास है ।
माँ……….!!! ,
तूझे अब मैं क्या लिखूँ…………!!!
*** पवित्र मन की हर रंग है तू ;
हर एक दुःख-दर्द में ,
नि:स्वार्थ नि:शर्त , हर पल ,
हर वक्त , मेरी संग है तू ।
तू ही त्याग है ,
तू ही ममता की जड़ ,
और अप्रतिम राग है ।
तू ही है अप्रतिम राग की ” जननी ” जान है ,
माँ….!!! तेरी ममता कितनी महान है ।
तेरी शक्ति से न कोई अनजान है ,
इस धरा पर ” माँ…!!! ” ,
केवल तू ही भगवान है ।
इस धरा पर ” माँ….!!! ” ,
केवल तू ही भगवान है ।।
हे माँ……..!!!!!! ,
तूझे अब मैं क्या लिखूँ………!!!!
हे माँ……….!!!!! ,
तूझे अब मैं क्या लिखूँ…………!!!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
१० / ०५ / २०२०