माँ के पल्लू में सारे सिक्के मिला करते हैं
घर पे छोड़ जाते हैं सारे बालाओं को
माँ के पल्लू में सारे सिक्के मिला करते हैं
माँ की दुआओ से फूल खिला करते है।
घर मे उन्ही से दिये रोशन हुआ करते है
अपने माँ बाप के हम दुलारे हुआ करते हैं
माँ के पल्लू में कई सिक्के मिला करते हैं
ए सबा उसके तब्बसुम से होकर ना गुज़रना
वो तेरी याद में अब रंजो गम हुआ करते हैं
वक्त की आंधयियो से मत घबराना कभी
ये तो बस इम्तेहान लेकर गुज़रा करते हैं
ये जो खद्दर पहने दिखते है कभी कभी
ये ही वो लोग हैं जो देश को लूटा करते हैं
नफरतो की आँधियों में मोहब्बत की संमा जलाये रख
बारहा लोग दर्द देकर यहाँ जख्म हरा करते हैं।।
®आकिब जावेद