माँ की स्मृति में बिटिया की पुकार
लाखो गम सहेज कर
मुझे बहदुर बनाती थी मेरी मां
अच्छे बुरे का फर्क
करना सिखाती थी मेरी मां।
जो मेरे लिए सारे जहां
से झगड जाती थी मेरी मां
नाम “सरोज” है इसलिये
हर रोज निभाती थी मेरी मां।
कभी खफा कभी प्यार से
दुलराती थी मेरी मां
इन प्यारी सी आंखो में
लाखो समुंदर का पानी लिए।
फिर भी मेरे चेहरे पर
मुस्कान सजाती थी मेरी मां
खुद स्वाभिमानी थी
मुझे भी स्वाभिमान हर पल
सिखाती थी मेरी मां
मेरी मां के क़दमों में जन्नत नहीं
बल्कि खुद जन्नत थी मेरी मां
सौ बार जन्म मिले
भगवान से यही गुजारिश है कि
यहीं मां मुझे हर जन्म में मिले
यहीं मेरी प्यारी मां….
इसी की मैं बिटिया बनु…
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद