माँ की महिमा
माँ की महिमा से धन्य हुवा ये गांव सारा
माँ तुझसे ही बना सृष्टि हुआ है उजियारा
ईश मिलन की पहली सीढ़ी ही होती माँ
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कुछ वर्ष पूर्व अकोला नाम के गाँव में बड़ी महामारी फ़ैल गई थी और सभी लोग उस गाँव से पलायन करने लगे थे ।
ऐसा नहीं था कि सिर्फ उसी गाँव में वो महामारी फैली थी लगभग आस-पास तकरीबन सभी गाँव
में वो महामारी फैल गई थी ।
हक्का बक्का हो गए थे सारे जब एक किसान परिवार उस गांव को छोड़कर नहीं जाना चाहता था
क्यू की वो उसका पुश्तैनी माकन था और माता का एक छोटा सा मंदिर था जिसमे वो परिवार रहता था
उनका 3 एकड़ का खेत था जिसमे अन्न उपजाते और अपने बच्चो का भरण पोषण करते थे वो ही उनके जीवनोपार्जन का जरिया था।
उस किसान परिवार के मुखिया का नाम रमेश और उनकी पत्नी अहिल्या और उसने 2 संतान एक पुत्र और एक पुत्री थी।
तब किसी ने कहा अरे भाई अगर तुम
जीवित ही नहीं रहे तो उस घर का क्या करोगे और इस खेती का ,
हमारी बात मानो और चलो हमारे साथ ।
तब उसने कहा नहीं भाई अगर जीवन
है तो यही और मृत्यु आए तो यही।
मुझे अपने परिवार के साथ साथ ये घर खेत और माता का मंदिर छोड़ कर नहीं जाना।
वो है न हम सब की रक्षा करने वाली माता और ऐसा कह कर वो पूजा करने चला गया ।
एक वो व्यक्ति (दिनकर) जो उसे समझा रहे थे वो कुछ बड़बड़ाने लगा छोड़ो यार इसे अपने परिवार की चिंता ही नहीं तो समझाने से उसे कोई लाभ नहीं है ।
फिर क्या उसी के साथ आया एक और व्यक्ति(विनय) बोला नहीं तुम नहीं समझ रहे हो उसे
दरसल उसे अपने परिवार की चिंता ही इस गाँव से जाने से रोक रही है ।
(दिनकर) ने कहा वो भला कैसे बतावो..
तो दूसरे व्यक्ति (विनय) ने कहा गाँव छोड़कर चले जावोगे पर अपने परिवार को खिलाओगे क्या , और ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हमारे गाँव में ही महामारी आई है । ये तो सभी गाँवो में फैल चुका है और दूसरे गांव वाले तुम्हारी मद्दत नहीं करने वाले ।
पर दिनकर और उसके साथ जो कोई भी था वो बात नहीं सुने और गाँव छोड़कर चल निकले ।
पर जो जो व्यक्ति समझा…..वो विनय की ही तरह अपने गाँव अकोला में रुक गया और वो गाँव छोड़कर नहीं गये उस किसान रमेश की तरह
और जब उस किसान रमेश से फिर मुलाकात हुई तो उसने विनय से पूछा तुम नहीं गए
गाँव छोड़कर तो उसने कहा हा रमेश भाई आप की
तरह मै भी अपने इस जन्म भूमि को छोड़कर नहीं
जाना चाहता हूँ। और तुम बतावो रमेश भाई क्या
हाल चाल है सब ठीक तो उसने कहा हा सब माता
रानी की कृपा है सब अच्छा है।
फिर कुछ दिन यूँ निकल गए और रमेश के पड़ोस में
जो रहते थे उनकी बेटी को वो महामारी हो गई अब
रमेश की पत्नी अहिल्या अपने पुत्र और पुत्री की चिंता करने लगी और कहने लगी की सुनो न जी हम भी चलते है गाँव छोड़कर ।
तब रमेश ने अपनी पत्नी से जो कहा वो सुनकर उसके बच्चे और पत्नी गदगद हो गए आँखे
भर आई सभी के ।
उसने कहा अहिल्या सुन माँ को छोड़कर तू जा सकती है तो चली जा मै कही नहीं जा रहा हूँ। अपनी पुत्री से बोल क्या वो तुझे छोड़कर जा सकती है । नहीं जा सकती तो मै मेरी
माँ को छोड़कर नहीं जाना चाहता हूँ , और हम तो
खुशनसीब है जो सभी परिवार एक साथ है खाने
को अन्न है । और मौत आएगी तो हम सब साथ है
ये गाँव के सभी लोग एक परिवार है । दूसरे गांव में
ये अपनापन नहीं होगा और खाने को अन्न भी नहीं
तो भूखे मरने से तो अच्छा है बची हुई जिंदगी माँ की भक्ति करते करते हम सभी निकाल दे। अगर
फिर भी तुम सभी जाना चाहते हो तो मै तुम सब
के जाने का इंतिजाम कर देता हूँ।
अहिल्या ने कहा नहीं जी कोई जरूरत
नहीं है जीना आप से साथ है और मृत्यु आई तो भी
आप के साथ पुत्र और पुत्री ने भी यही कहा हा पिता श्री हम भी आप से अलग नहीं रहना चाहते है
हम भी आप के साथ रहेंगे ।
रमेश ने कहाँ चलो अच्छा है समझ गए
अब मंदिर में जाकर जल्दी से पंचामृत चढ़ाया है ताम्र कलश में वो लेकर आ पड़ोसी के लड़की को वो पिला आता हूँ ।
फिर रमेश अपने पसोड़ी के घर जाकर वो पिला आया और उनसे कहा आप मंदिर जैसा छोटा सा
माँ को स्थापित करो रोज पूजा करो । और ऐसा
कह कर वो जगा और दिशा बताया ।
फिर रमेश ने अपने बेटे को आवाज लगाई माता की चुनरी ले कर आ ।
उसका पुत्र आया चुनरी लेकर उस लड़की के ऊपर
ओढ़ा दिया फिर क्या 3 से 4 रोज ऐसा ही चलता गया। और उनकी पड़ोस की बेटी ठीक होने लगी
10 दिन बाद वो अपने पैरों में चलने लगी ये देख
कर उनके पिता पत्नी और रमेश के पुत्र और पुत्री
और उनकी पत्नी अहिल्या माता के महिमा देख
प्रसन्न आनंदित प्रफुल्लित हो उठे और उन्हें गांव
न छोड़कर जाने का फैसला सही साबित जो हुवा
वो पड़ोसी भी कृतज्ञ हो गया था ।
अब उसने रमेश के बातये मुताबिक माता को विराजित किया प्राण प्रतिष्ठा के साथ अब तो
रमेश के पड़ोसी फैमली की तरह रहने लगे थे
ये बात गाँव में टिक टाक की तरह वायरल हो
गई थी सब गाँव वाले उस किसान रमेश को
बहुत मानने लगे थे ।
विनय को भी ये महामारी ने घेर रखा था
वो कुछ दिनों से गाँव में दिख नहीं रहा था तभी किसी ने रमेश को बताया कि विनय को महामारी
हो गया है । तो रमेश ने झठ पट से हाथ मुहँ धोकर
खेल से अपने घर की तरफ चल निकला और अपने
घर पहुचते ही माँ की पूजा की और वो पन्चामृत और माता की चुनरी लेकर विनय की घर तरफ चल
निकला ।
जैसे ही वो विनय के घर प्रवेश किया तो
वहा एक मंदिर बन रही थी उसकी पत्नी से बात हुई
तो कहा हा भाई साहब आप की पत्नी अहिल्या आई थी वही बताई तो मैने मंदिर बनवा रही हूं। आप जावो वो अंदर ही खाट पर लेटे है।
फिर रमेश में पन्चामृत पिलाई माई का
चुनरी ओढाई । ऐसा 10 रोज तक चला और वो जो
विनय है वो अब उठ कर चलने लगा वो ठीक हो गया और 10 दिनों के भीतर माता का मंदिर बन कर तैयार हो गया ।
पुरे विधी विधान से माता को विराजित किया प्राणप्रतिष्ठा करके रोज पूजा करने लगे अब ये
पुरे गाँव में ही सभी अपने घर पर माता को विराजित करने लगे और रोज पूजा करने लगे ।
ऐसा करते करते अब नवरात्र का दिन आ गया
सभी गांव वाले चँदा इक्कठा कर के बड़े पैमाने
पर महा यज्ञ 9 दिनों का पुरे नवरात्र नव दुर्गा सप्तशती पूजा सभी माँ का आवाह्न कर के
यज्ञ में शत्रु नाश महामारी का नाश और तरह
तरह के अनुष्ठान होने लगे जिससे पुरे गांव में
मंत्रों का जाप गूँजने लगे वायु पूरी तरह से अब
शुद्ध हो चुकी थी सब रोग और वो महामारी उस
यज्ञ के साथ जलकर खत्म हो गई थी कपूर की
खुशबु घी तरह तरह के जड़ी बूटी कमल गट्टा
और अंत में सभी ने पूर्ण आहुति के रूप में
नारियल के भेल डालें अब इस गांव पर
माँ का आशीर्वाद बन चूका था अब इस गांव
में वो महामारी किसी को नहीं होती थी ।
जो लोग गाँव छोड़कर गए वो अब वापस आने लगे थे और कुछ दूसरे गांव से भी आने लगे थे तभी रमेश ने कहा आप अपने ही गांव में रहे माँ की पूजा
करे ये माँ का चुनरी और ये जल लेकर आप अपने गांव में जाएँ ।
फिर क्या आसपास के सभी गांव वाले रमेश की बात मानते थे और उन्ही की भक्ति के कारण ही
तो सभी आज सुरक्षित जी रहे है और वो सभी
माँ की महिमा है ।
ये थी माँ की महिमा।
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स्वरचित-प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला-महासमुन्द(छत्तीसगढ़)
14/अगस्त/2021 शनिवार