माँ ऐसा वर ढूंँढना
#दिनांक:-15/5/2024
#शीर्षक :- माँ ऐसा वर ढूंँढना
प्रेमपूर्ण सद्भाव की हो पराकाष्ठा,
निर्वाह की रखे हमेशा चेष्टा।
नम ना होने दे कभी नयनों को,
रूठूँ अगर मनुहार की रहे निष्ठा।
मेरी ही ग़ज़ल कहें, कविता लिखें,
मुझमें सराबोर हो मुझे सरिता लिखें।
अहसास बातों का न रहे कभी मोहताज,
कुरूप हूँ पर ना कभी वर्णित भारिता लिखें।
पति अद्वितीय विलक्षण सिमरन पाऊँ,
हर दु:ख-दर्द का अथाह समर्पण पाऊँ।
खाएँ मिल-जुलकर, खाना साथ बाँटकर,
सम्मान प्रेम भावना अगाध प्रत्यर्पण पाऊँ।
इतवार का भार रहे समान कंधों पर,
अनाज बखार रहे भरा मेहनत धंधों पर।
कमी खोज हर दम रहे उसे हर जगह मेरी,
डोर अटूट विश्वास का बंधन रंगीन रंगों पर।
माँ ऐसा वर ढूंँढना संग-साथ का संगम हो,
बचपना जब करूँ पिता समान संयम हो।
दुलार बस और बस तेरे जैसा करे मेरी माँ,
गलती पर भी विनयशील उदार संयत हो।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई