महासती द्रोपदी की दो भूलें
हे पुण्य सलिला ,
यज्ञ सैनी ,वीरांगना,
दिव्य कन्या ,
देवी द्रोपदी !
तुम्हारे साथ कब
न्याय हुआ।
हे कृष्णे ! कृष्ण सखी ,
होकर भी विधाता के द्वारा
सदा अन्याय हुआ।
सर्वप्रथम राज कन्या होकर ,
संन्यासी से विवाह हुआ।
और जब ब्याह कर आई ,
मां कुंती के द्वारा ५ भाइयों में ,
बांट दी गई ।
चौसर के कपट पूर्ण खेल में,
युद्धिष्ठर ने सब कुछ हार दिया।
अपना राज पाट,भाई ,स्वयं को भी।
मगर तुम्हें दाव पर लगाने का उसे
किसने अधिकार दिया था ?
जिसका दुष्परिणाम यह हुआ ,
भरे राज महल में बड़े बुजुर्गों ,
के समक्ष अपमानित की गई।
अपशब्द भी सुनने पड़े।
ये तो तुम्हारे साथ अन्याय हुआ ,
उसका परिणाम महाभारत युद्ध के ,
रूप में हुआ।
विधि ने तुम्हारे साथ न्याय किया।
परंतु तुमसे कुछ भूलें भी हुई ,
तुमसे मात्र दो भूलें हुईं ।
तुमने इंद्रप्रस्थ की माया पूर्ण ,
महल में दुर्योधन का मजाक ,
नहीं उड़ाना चाहिए था।
उसका अपमान नहीं करना चाहिए था।
जिसके परिणाम स्वरूप ,
उसके मन में तुमसे बदला ,
लेने की दुर्भावना जागी ।
दूसरे तुम्हें भरी राज सभा में बुलाए ,
जाने से पूर्व ही अपने मित्र श्री कृष्ण
का स्मरण करना चाहिए था।
उनकी सहायता हेतु पहले ही पुकार
लेती तुम ।
तो नारी जाति पर हुए इतने बड़े
अपमान से बच जाती ।
तुम्हें बालों से खींच कर दुशासन ,
भारी सभा में लाया,तब भी नहीं ,
और तुमने औरों से सहयता मांगी ,
मगर कान्हा से नही ।
तुमने कान्हा से तब सहायता मांगी ,
जब उस दुष्ट दुशासन ने ,
तुम्हारा चीर हरण करना प्रारम्भ किया।
काश ! तुम पहले ही श्री कृष्ण की स्मरण
कर लेती ।
काश ! तुम ये दो भूलें न करती ।