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3 Nov 2022 · 9 min read

|| महाराणा प्रताप सिंह ||

“अपने और अपने परिवार के अलावा जो अपने राष्ट्र के बारे में सोचें वही सच्चा नागरिक होता है।” –महाराणा प्रताप सिंह

पूरे देश में महाराणा प्रताप की 478वीं जयंती मनाई गई। प्रताप ऐसे योद्धा थे, जो कभी मुगलों के आगे नहीं झुके। उनका संघर्ष इतिहास में अमर है। भारत का हर बच्चा उनके बारे मे पड़ते हुए बढा हुआ है इसके बावजूद उनके बारे मे कुछ बाते एसी है जो सुनने मे तो असंभव लगती है, लेकिन हकीकत मे सच है।
हम इस महान योद्धा के बारे मे एसी ही कुछ बाते बताने जा रहे है-
प्रताप, उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के बेटे थे। दुश्मन भी उनकी युद्धकला की तारीफ करते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, महाराणा प्रताप का परिवार भी काफी बड़ा था। प्रताप का जन्म हुआ और महाराणा उदयसिंह का भाग्योदय होने लगा…
9 मई 1540 को प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ किले में हुआ था। उनके जन्म के साथ ही महाराणा उदयसिंह ने खोए हुए चित्तौड़ किले को जीत लिया था। इस विजय यात्रा में जयवंता बाई भी उदयसिंह के साथ थीं। चित्तौड़ विजय के बाद उदयसिंह ने कई राजघरानों में शादियां की। जिसके बाद प्रताप की मां जयवंता बाई के खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो गया। जयंवता बाई बालक कुँवर प्रताप को लेकर चित्तौड़ दुर्ग से नीचे बनी हवेली में रहने लगीं। यहीं से प्रताप की ट्रेनिंग शुरू हुई।

प्रताप को मिली थी कृष्ण के युद्ध कौशल जैसी ट्रेनिंग:-
प्रताप की मां जयवंता बाई खुद एक घुड़सवार थीं और उन्होंने अपने बेटे को भी दुनिया का बेहतरीन घुड़सवार और शूरवीर बनाया। वे कृष्ण भक्त थीं, इसलिए कृष्ण के युद्ध कौशल को भी प्रताप के जीवन में उतार दिया। उन्हें प्रशासनिक दक्षता सिखाई और रणनीतिकार बनाया।

शेर से भिड़ गए थे प्रताप :–
महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था। उनका बचपन चित्तौड़ में बीता। बचपन से निडर, साहसी और भाला चलाने में निपुण महाराणा प्रताप जंगल में एक बार शेर से ही भिड़ गए थे और उसे मार दिया था।

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक तथ्य…
1.. महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
2.. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो था और कवच का वजन 72 किलो। कवच,भाला,ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो 208 किलो. था। ये बात अचंभित करने वाली है कि इतना वजन लेकर प्रताप रणभूमि में लड़ते थे।
3.. आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
4.. अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधे हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत मेरी (अकबर) की ही रहेगी।
5.. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 राजपूत सैनिक थे और अकबर की ओर से 80000 मुगल सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए थे।
6.. राणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज हल्दी घाटी में सुरक्षित है।
7.. महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात महाराणा कि फौज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को।
8.. हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पायी गयी। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला।
9.. महाराणा प्रताप को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा जयमल मेड़तिया ने दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे।
10.. मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वे राणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और प्रताप भी बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत है तो दूसरी तरफ भील।
11.. 26 फीट का नाला एक छलांग में लांघ गया था प्रताप का चेतक। कहते है कि जब कोई अच्छाई के लिए लड़ता है तो पूरी कायनात उसे जीत दिलाने में लग जाती है ये बात हम इसलिए कह रहे है क्योकि उनका घोड़ा चेतक भी उन्हें जीत दिलाने के लिए अंतिम समय तक लड़ता रहा। चेतक की ताकत का पता इसी से लगाया जा सकता है कि उसके मूहँ के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी। यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे।
12.. महाराणा का घोड़ा चेतक हवा से बाते करता था जो महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहा वो घायल हुआ वहीं आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ मरा वहाँ मंदिर है।
13.. मरने से पहले महाराणा ने खोया हुआ 85% मेवाड़ फिर से जीत लिया था सोने चांदी और महलो को छोड़ वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे।
14.. महाराणा प्रताप के स्वयं का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी दो म्यान वाली तलवार और 81 किलो का भाला रखते थे हाथ में। (प्रताप हमेशा दो तलवार रखते थे एक अपने लिए और एक निहत्थे दुश्मन के लिए क्योकि प्रताप कभी निहत्थे पर वार नहीं करते थे।) महाराणा प्रताप सहित चेतक करीब 200 किलो से ज्यादा वजन लेकर हवा की गति से रणभूमि में चलता था और वह कारनामे कर देता था जो दूसरे घोड़े नही कर पाते थे। रणभूमि में महाराणा के भाले और कवच से ही शत्रु भयभीत हो जाया करते थे।
15.. मेवाड़ राजघराने के वारिस को एक लिंग जी भगवान का दीवान माना जाता है।
16.. छत्रपति शिवाजी महाराज भी मूल रूप से मेवाड़ से ताल्लुख रखते थे वीर शिवाजी के पर दादा उदयपुर महाराणा के छोटे भाई थे।
17.. मेवाड़ राजघराना आज भी दुनिया का सबसे प्राचीन राजघराना है
18.. अकबर को अफगान के शेख रहमुर खान ने कहा था अगर तुम महाराणा प्रताप और जयमल मैड़तिया को अपने साथ मिलालो तो तुम्हे विश्व विजेता बनने से कोई नहीं रोक सकता। शेख रहमुर की बात पर गौर करते हुए अकबर ने महाराणा को एक प्रस्ताव दिया जिसमे अकबर ने महाराणा प्रताप के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर आप हमारी सियासत को स्वीकार करते है तो आधे हिन्दुस्तान की सत्ता आपको दे दी जायेगी लेकिन महाराणा ने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और लगातार 30 वर्षो तक प्रयास करने के बावज़ूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका।

हिंदुस्तान पुराने जमाने से ही सुसंस्कृत और संपन्न देश रहा है। मध्ययुग की शुरुआत में मुस्लिम शासकों का भारत आगमन हो गया था। dainikbhaskar.com रायल्स ऑफ इंडिया सीरीज के तहत बताने जा रहा है मशहूर राजाओं और मुगल बादशाहों की जानी-अनजानी कहानियों के बारे में। इसी कड़ी में आज हम आपको बताने जा रहे हैं मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप की सेना के बीच 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध की कहानी के कुछ अंश 18 जून 1576 में मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप सिंह और मुगल बादशाह अकबर के बीच भीषण युद्ध हुआ था। कई दौर में यह युद्ध चला। कहा जाता है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की वीरता और युद्ध-कौशल को देखकर अकबर दंग रह गया था। बहुत ही कम सैनिकों के बल पर महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना से जबरदस्त मुकाबला किया था। यह युद्ध भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्धों में गिना जाता है।

क्या हुआ था हल्दिघाटी युद्ध मे…
हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
आपको बता दें हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 80000 सैनिक इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे।

हल्दी घाटी युद्ध से पहले गिरफ्तार कर सकते थे मान सिंह को पर छोड़ दिया:–
यह हल्दी घाटी युद्ध से ठीक पहले का वाकया है, जब मानसिंह ने मेवाड़ पर आक्रमण के लिए सेना के साथ डेरा डाल दिया था। युद्ध की पहली शाम मान सिंह शिकार के लिए गया। प्रताप को इसकी सूचना मिली कि मान सिंह को अभी गिरफ्तार कर लें या फिर आज ही मौत की नींद सुला दें। प्रताप ने साफ मना कर दिया और कहा ‘उससे तो अब युद्ध में ही सामना करेंगे।’

रोंगटे खड़ा कर देने वाला है युद्ध का आंखों देखा बयान:– चारण रामा सांदू ने आंखों देखा हाल लिखा है कि “प्रताप ने मान सिंह पर वार किया। वह झुककर बच गया, महावत मारा गया। बेकाबू हाथी को मानसिंह ने संभाल लिया। सबको भ्रम हुआ कि मानसिंह मर गया। दूसरे ही पल बहलोल खां पर प्रताप ने ऐसा वार किया कि सिर से घोड़े तक के दो टुकड़े कर दिए।”
युद्ध में प्रताप को बंदूक की गोली सहित आठ बड़े घाव लगे थे। तीर-तलवार की अनगिनत खरोंचें थीं। प्रताप के घावों को कालोड़ा में मरहम मिला। इस पर बदायूनी लिखते हैं कि ऐसे वीर की ख्याति लिखते मेरी कलम भी रुक जाती है।

जब-जब मेवाड़ पर मौत का साया लहराया इस परिवार ने जान पर खेल कर की मेवाड़ की रक्षा:–
खानवा में बाबर के साथ युद्ध में राणा सांगा के एक सेनापति थे अज्जाजी। वे 16 मार्च 1527 को इसी रणभूमि में सांगा को बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वे उत्तर भारत की संयुक्त सेना के सेनापति थे। बहादुर शाह गुजराती ने 1535 में चित्तौड़ पर हमला किया तो अज्जाजी के बेटे सिंहाजी ने 1535 में प्राण न्योछावर किए।
पीढ़ी दर पीढ़ी तैयार होते रहे बलिदानी
अकबर की सेना ने 1568 में आक्रमण किया तो अज्जा जी के पोते सुरताण सिंह खूब लड़े और शहीद हुए। जैसे-जैसे महाराणा परिवार का नेतृत्व बदलता गया, इस परिवार के बलिदानी भी तैयार होते रहे। महाराणा प्रताप हल्दी घाटी के युद्ध में उतरे तो झाला मान एक शूरवीर सेनापति के रूप में मौजूद थे।

प्रताप को बचाने खुद पहन लिए राज्य छत्र:–
हल्दी घाटी युद्ध में झाला मान ने घायल प्रताप पर मुगलों का आक्रमण भांप लिया था। झाला ने प्रताप को बचाने के लिए राज्य छत्र, चंवर आदि उतार कर खुद धारण कर लिए। रणनीति समझ प्रताप चेतक पर सवार हो निर्जन स्थान की ओर निकल पड़े। राज चिह्नों से भ्रमित मुगल सेना झाला को प्रताप समझ उन पर टूट पड़ी।

प्रताप ने हमलावर रहीम की पत्नी और बेटियों का सम्मान किया:–
अब्दुल रहीमखान खाना अकबर के नवरत्नों में शामिल था। वह सैनिक टुकड़ी के साथ हमलावर के रूप में शेरपुर पहुंचा तो कुंवर अमर सिंह ने उस पर हमला कर दिया और उसे पत्नियों और बहनों-बेटियों सहित बंदी बना लिया। अमर सिंह रहीम को प्रताप के सामने ले आये। प्रताप ने यह देखा तो वे बेटे पर बहुत नाराज हुए और बोले “इस कवि को तत्काल रिहा करो और उनके परिवार की महिलाओं को सम्मान के साथ वापस भेजो।” वजह यह कि प्रताप खुद भी कवि थे और रहीम का बहुत सम्मान करते थे।

जहांगीर ने रहीम के बेटे का सिर काट कर भेजा:– रहीम जब बूढ़ा हो गया था, उस वक्त अकबर के बेटे जहांगीर ने एक छोटी-सी नाराजगी पर उनके बेटे दाराब का सिर काटकर उन्हें कहलवा भेजा कि यह खरबूजा आपकी इनायत के लिए है। 70 वर्ष के बूढ़े बाप ने रूमाल हटाया तो वहां खरबूजे की जगह अपने बेटे का सिर देख फूट-फूट कर रोने लगे। उसने इस क्रूरता पर आंसुओं के साथ प्रताप की महानता को याद किया। रहीम को इस बात की सजा मिली कि वह बाप-बेटे (अकबर और जहांगीर) में रिश्ते खराब ना हो इसकी कोशिश कर रहा था।

महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी:–
दोस्तों, आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था “रामप्रसाद।” उसके बारे में आपको कुछ बातें बताता हूँ।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल-बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है। वो लिखता है कि
‘जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी। एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद।’
आगे अल-बदायुनी लिखता है कि
‘वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था।’
वो आगे लिखता है कि
‘उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उन पर 14 महावतो को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।’
अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति :–
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया। जहाँ अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही पानी पिया और वो शहीद हो गया। तब अकबर ने कहा था कि-
“जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा ?”
धन्य है हमारी भारतभूमि जहाँ के मनुष्य को छोड़िये जानवर ने भी अपना स्वाभिमान नहीँ जाने दिया भले ही अपने प्राणोँ कि आहुती दे दी।
सच है हमेँ अपने इतिहास पर गर्व है लेकिन वर्तमान पर नहीँ।

वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।

मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने वाले ऐसे शूरवीर, राष्ट्रगौरव, एकलिंग जी के पुत्र को शत्-शत् नमन।

Language: Hindi
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