महामारी
(1)
छीन लिया हमसे सब कुछ
बीते साल के इस दौर में
ना ले रहा थमने का नाम
बढ़ रहा ये अपने ही तौर में
(2)
बदल―बदल कर रूप अपना
फैल रहा एक से और में
दुश्वार सा हो गया है जीना
खुले वातावरण के ठौर में
(3)
लापरवाही से ही बढ़ा है ये
एक पौर से दूसरे पौर में
चारो तरफ फैला महामारी
शहर होया गाँव की चौर में
(4)
कुछ रोज में हो जाये मौत
जी रहे है सभी इस हौर में
शतर्क होकर चलना होगा
खुला घूम रहा इस सौर में
(5)
कोरोना , डेल्टा के बाद अब
आये ओमीक्रोन रूप नौर में
लगा मास्क, सेनेटाइजर औ
रख दूरी, लाओ बात गौर में
(6)
प्यार मासूमियत खो गया है
न दिख रहा हममें न और में
तीसरी लहर की सुरुवात है
व्यर्थ ना निकल इस ठौर में
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)