महाकाल का संदेश
बोले कालों के महाकाल, सुन धरती के इंसान रे
छलक रहीं अमृत की बूंदें, पान करो इंसान रे
हिंसा छोड़ो जीवन जोड़ो, प्रेम का दो पैगाम रे
दुर्लभ मनुज जन्म है पाया, कर ले कुछ सत् काम रे
कोई ईश्वर कोई अल्लाह, कोई कहे भगवान रे
उसके तो हैं नाम अनेकों, लड़ने का क्या काम रे
सत्य शांति दया क्षमा, धर्म के लक्षण हैं इंसान रे
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सब तो है इंसान रे
मानव हो मानवता जोड़ो, हिंसा का कर काम तमाम रे
एक पिता है एक ही माता, मानव अमृत पुत्र कहाता
एक ही मालिक सारे जग का, उसके हैं कई नाम रे
क्यों भून रहे हो गोली से ,क्यों जहर उगलते बोली से
क्यों फैला आतंक जगत में, क्यों मार रहे इंसान रे
कौन है हिंदू ,कौन है मुस्लिम, कौन सिया को सुन्नी
कौन सिख ईसाई यहूदी, सब तो है इंसान रे
क्यों मंदिर में खून बहाते, क्यों मस्जिद में मारे जाते
क्यों धू धू कर जलते गिरजे, गुरुद्वारे सकल जहान रे
अपने दिल में सोच जरा, इंसान हो या शैतान रे
धरती मां हो रही दुखारी, मुझ पर हिंसा करो ना भारी
व्यर्थ नहीं बदनाम धर्म हो, मानवता का नहीं क्षरण हो
जाग जाग इंसान रे
उठो हे धरतीपुत्र उठो, उठो अल्लाह के बंदों
हिंसा नहीं प्रेम फैलाओ, मिलकर सब आतंक मिटाओ
अमन शांति और प्रेम प्रीत से, दुनिया बने महान रे