मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक कोरोना संक्रमित
चीन से आई नमुराद बीमारी ने देश में दुबारा पैर पसार लिए हैं। इस द्वितीय कोरोना संक्रमण लहर ने इस बार अपना एक अलग स्वरूप और भयावह रूप ले लिया है। आम जनता तो त्रस्त थी ही, अनेक जानी-मानी हस्तियाँ फ़िल्मी, साहित्यिक व राजनैतिक भी इससे अछूती नहीं हैं। अनेक दिग्गज असमय ही काल का ग्रास बन चुके हैं और कुछ तैयारी कर रहे हैं। महाभारत के युद्ध में अथवा प्रथम-द्वितीय विश्व युद्ध में जितने शव गिरे थे कोरोना इस वर्ष शायद उस आंकड़े को छूने के लिए बेक़रार नज़र आ रहा है। इसी बीच ख़बर आई है कि करोड़ों पाठकों के दिलों में अपनी जगह बनाने वाले सुप्रसिद्ध हिन्दी जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक और उनका इकलौता पुत्र सुनील पाठक भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। उस पर दुर्भाग्य ये हैं कि, नोएडा (उत्तर प्रदेश) के किसी भी अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन उन्हें उपलब्ध नहीं है। बड़े-बड़े पत्रकार, साहित्यकार व उनके प्रशंसक सोशल मीडिया, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इस महान हिन्दी हस्ती को बचाने की लोगों से अपील कर रहे हैं। मदद के लिए बड़ी संस्थाओं और नेताओं को सामने आने की गुहार की जा रही है। कुछ हो नहीं रहा है!
पिछले बरस मई 2020 में ‘ई-साहित्य आज तक’ की महफिल के माध्यम से पाठक जी ने सारी समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने कोरोना वायरस और लॉकडाउन को लेकर भी काफ़ी बातें की थीं। उस वक़्त शम्स ताहिर खान के साथ बातचीत में सुरेंद्र ने बताया कि, “लॉकडाउन के दौरान क्राइम कम हुआ है क्योंकि लोग बाहर ही नहीं निकल रहे हैं. जब सड़कों पर लोग ही नहीं होंगे तो क्राइम किस तरह से हो सकेगा? मर्डर रोज नहीं होते हैं, जहाँ तक जेब काटने की बात है तो वो दिन में हजारों हो सकते हैं लेकिन वो तभी हो पाएगा जब जिंदगी अपने ढर्रे पर चलेगी! जब कोरोना खत्म होगा तो लाइफ अपने आप नॉर्मल हो जाएगी!”
इसी कार्यक्रम में जब शम्स जी ने पूछा कि, “लॉकडाउन के दौरान उनकी खुद की जिंदगी किस तरह कोरोना से प्रभावित हुई है?” तो इस सवाल के जवाब में सुरेंद्र मोहन जी ने चिरपरिचित अंदाज़ में हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, “लेखक को कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता हैं क्योंकि उसके ख्यालों को कैद नहीं किया जा सकता है। हो सकता है अगले बरस तक शायद मेरी कोई नई किताब प्रकाशित न हो पाए।”
जब शम्स भाई ने कोरोना काल के दौरान उनके निजी जीवन पर इसके प्रभाव के संबन्ध में सवाल किया तो पाठक जी ने उसी ज़िन्दादिली से मगर कुछ सकुचाने हुए कहा, “संकोच के साथ कह रहा हूं कि मेरी जो इस वक्त लाइफ है वो कोरोना से अफेक्टेड नहीं है। जब कोरोना का हाहाकार हुआ था, तब भी मैं घर में था। लॉकडाउन हुआ, तो भी घर में हूं! लॉकडाउन खुल जाएगा, तो भी मुझे घर में रहना है! मैं भीड़ में भी अकेला हूं! मैं एकान्त प्रिय हूँ तो मुझे कोरोना कोई दखल नहीं दे रहा है! मेरी जो जीवनशैली थी, वही सब कुछ ठीक वैसा ही चल रहा है, जैसा पिछले 80 सालों से चल रहा था। अब इस अवस्था में मेरी कोई भटकने की उम्र और मनसा भी नहीं है!” और आगे एक शेर के ज़रिये उन्होंने अपनी बात ख़त्म की—
मुझे दुनिया से क्या मतलब मैं अपनी दुनिया आप हूँ!
दुर्भाग्य से आज वे खुद कोरोना की चपेट में आ गए हैं। उनके सुपुत्र सुनील पहले कोरोना संक्रमित हुए थे। जिनके कारण कोरोना सुरेन्द्र मोहन जी को भी हो गया। अभी हाल ही में उनकी जीवनी का दूसरा भाग राजकमल प्रकाशन से आया है। अपने नियमित पाठकों की जानकारी के लिए यहाँ बता दूँ कि सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा के दो खण्ड “ना बैरी ना कोई बेगाना” (भाग एक/प्रकाशक: वेस्टलैण्ड); “हम नहीं चंगे, बुरा न कोय” (भाग दो/प्रकाशक: राजकमल); महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों से प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरा भाग भी तैयार है जो अगले वर्ष तक बाज़ार में आ जायेगा। हमारी शुभकामनायें हैं कि दोनों जल्दी स्वाथ्य लाभ करें और सुरेन्द्र जी की नई किताब हमें पढ़ने को मिले। तो दुआ में हाथ उठाकर बोलो, “आमीन! शुभ आमीन!”