मर्द को दर्द नहीं होता है
कौन कहता है ? मर्द को दर्द नहीं होता है ,
मर्द र्में भी एक दिल होता है ,
जो पत्थर नहीं शीशे की तरह होता है ,
चोट लगते ही टूटकर बिखरने पर भी
जो सदा नहीं देता है ,
अपनों की ख़ातिर क़ुर्बानी का उसमें भी
जज्ब़ा होता है ,
ग़म को जज़्ब किए जो फ़र्ज़ से मुतासिर होता है ,
ज़िंदगी के सफ़र में जो एक
हम-नफ़स , हम-नवा, मुसाफ़िर होता है ,
कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता है ,
उसको भी अपनों के दर्द का एहसास होता है ।