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18 May 2023 · 1 min read

मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार (कुंडलिया)

मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार (कुंडलिया)
———————————————–
मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार
दया रोज प्रभु कर रहे ,धन्यवाद सौ बार
धन्यवाद सौ बार , प्रात की स्वर्णिम रेखा
देखी घिरती शाम, चंद्रमा निशि का देखा
कहते रवि कविराय ,आयु दो पूरी करने
प्रभु हों जब सौ साल ,हर्ष से जाएँ मरने
—————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

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