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24 Jul 2022 · 1 min read

*मरने का हर मन में डर है (गीतिका)*

मरने का हर मन में डर है (गीतिका)
_________________________
(1)
मरने का हर मन में डर है
यद्यपि पता देह नश्वर है
(2)
तन के भीतर किसने ढूॅंढा
आत्म-तत्व जो अजर-अमर है
(3)
बार-बार का जन्म-मरण यह
प्रभु की लीला का चक्कर है
(4)
जन्म-मरण से क्या घबराना
होता रहा सदा घर-घर है
(5)
पता मनुज को मृत्यु सुनिश्चित
चाह रहा अमरत्व मगर है
(6)
निज अस्तित्व मिटाया जिसने
मोक्ष उसी का हुआ मुखर है
(7)
बहीं नदी में राख-अस्थियॉं
किसे पता अब मृतक किधर है
________________________
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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