मन
खुद को जब खंगाला मैंने,
क्या बोलूँ क्या पाया मैंने?
अति कठिन है मित्र तथ्य वो,
बामुश्किल ही मैं कहता हूँ,
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ,
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
खुद को जब खंगाला मैंने,
क्या बोलूँ क्या पाया मैंने?
अति कठिन है मित्र तथ्य वो,
बामुश्किल ही मैं कहता हूँ,
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ,
हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।
अजय अमिताभ सुमन
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