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11 Sep 2023 · 1 min read

मन सोचता है…

मन सोचता है…..
कहां मेरा बसेरा
चलो रे चलो नैया,
मैं हूं खेवैया तुम्हारा ।

मन सोचता है कहां मेरा बसेरा….

नदिया की धारा
जाने कहां लेकर जाए
किधर की चल पुरवा
न जाने किधर मुड़ जाए
सच सच देखो मन घबराए।

मन सोचता है कहां मेरा बसेरा….

सूरज की लालिमा मुझको पुकारे
चले आओ मितवा अब सांझ ढले
गुनगुना उठी है नदियों की लहरें।

मन सोचता है कहां मेरा बसेरा…

सतरंगी सपने लिए
मस्ती में अकेले झूम उठे
मोह छोड़ मेरा पकड़ो अपनी राह
ऐसे ना लुभाओ ,
हमें मनचली लहरों
कहीं तो होगी बस्ती
कहीं तो होगा सवेरा।

मन सोचता है कहां मेरा बसेरा….

हरमिंदर कौर
अमरोहा( यूपी )
मौलिक स्वरचित रचना

2 Likes · 1 Comment · 338 Views

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