मन वैरागी हो गया
ग़म का सागर नहीं सकता
उस शख्स का कुछ बिगाड़
जो अधिकतम खोने के लिए
हर समय मन से रहता तैयार
मन वैरागी हो गया जिसका
उसको दुनिया की नहीं फ़िक्र
जिसको जो जी में आए कहे
करता वो नहीं किसी की फ़िक्र
दुख और सुख उसके लिए सदा
एक स्वाभाविक सा घटनाक्रम
वो भौतिक संसाधन पाने को भी
नहीं करता कोई भी षटकर्म
हे प्रभु मुझको भी दीजिए सदा
वैराग्य का ही अद्भुत वरदान
भौतिकता से दूर रहकर कर
सकूं मैं सचमुच आत्मोत्थान