मन, तुम्हें समझना होगा
मानव जीवन मे आएं
और सपनों के महल सजाएं,
इच्छा चाहत पर कैसे,
अंकुश लगाएं।
है मन मानव का चंचल
नई-नई चाहत उपजे हर पल।
ऐ मन बता !
तेरे पास क्यों हैं
चाहतें इतनी ?
मेरी क्षमता सीमित है
सामर्थ्य नहीं इतनी!!
तुम्हारे पास तो हैं
चाहतें अपरिमित।
एक पूरी करती तो
तू दूसरी लेकर आ जाता है,
बता न कहाँ से और
क्यों लेकर आता है?
इच्छाओं के दास सुन,
मन, तुम्हें कुछ बदलना होगा,
भौतिक से आध्यात्मिक तक
परम तत्व में विलीन होने की भी
तुमको रखनी होगी ईच्छा ही,
तुझे गतिमान रहना है तो
चाहतों में ही पलना होगा,
कोई न कोई इच्छा लेकर
अवसान तक चलना होगा।
इन्द्रियों को काबू में रखकर
तुम्हें समझना होगा।
- सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान