मन को न जानते हैं
मन को न जानते हैं
जिस्मों को देखते हैं
सदियों से ये तमाशा
आंखों से देखते हैं
तन पर पड़े हुए
कपड़ो को देखते हैं
किस वक़्त घर से निकली
वो वक़्त देखते हैं
अफ़सोस ! अपनी सोच का
दर्पण न देखते हैं
अपनी निम्नता का
स्तर न देखते हैं ।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद