मन को अपने न बेलगाम करो
मन को अपने न बेलगाम करो
ज़िन्दगी को न यूँ तमाम करो
है अदब ही ये राम राम करो
या तो मिलने पे तुम सलाम करो
वक़्त के हाथ के खिलौने हम
बस यहाँ अपना अपना काम करो
झूम जाओ नशे में इसकी तुम
ज़िन्दगी को यूँ मय का जाम करो
हौसलों को बुलंद कर लो तुम
वक़्त को अपना यूँ गुलाम करो
आज को भी जरा सा जी लो तुम
सिर्फ कल का न इंतज़ाम करो
मंज़िलों को अगर तुम्हें पाना
अपना आराम ही हराम करो
काम दिखलाओ कुछ अलग करके
‘अर्चना’ अपना ऊँचा नाम करो
17-08-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
(मुरादाबाद)