मन के मीत
, मन के मीत
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मन के मीत रहें —–मन में ही,
तब तक तो– अच्छे लगते हैं !
रहो समर्पित जब तक उन को-
तब तक तो –अपने लगते हैं !!
मन से बाहर नामकरण पर ,
मन के मीत बिदक जाते हैं !
उनकी वाह-वाह के फण्डे –
बहुत सहज ही खुल जातेहैं !!
जान-बूझ कर अजमाया तो ,
मन के मीत, मीत ना निकले!
सिर्फ स्वार्थ तक साथ रहे वो ,
अण्डे के छिलके भर निकले !!
हम ने जिन को अपना माना ,
अपनों से भी बढ़कर –माना !
मेरी बारी आई तब वो ,,,,,,,,,,
लगे छिटकने— ताना-बाना !!
क्या-क्या उन के मन में क्या था,
ये तो समझ तभी —–मैं पाया !
मैं ने जब उन से कुछ चाहा —–
रिक्त कटोरा हाथ —– थमाया !!
जो भी हो है—– एक कहावत,
अपने तो——- अपने होते हैं !
लेकिन इक्कीसवीं सदी में —–
अपने — बस– सपने होते हैं !!
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16/08/2024
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Ram Swaroop Dinkar