मन की मेहरबानियाँ
जिन्दा रहने के लिए जरुरी तुम वो फिजा हो
शाख से टूटे पत्तों की बिखरी हुई खिजाँ हो।।
तुम मिरे दिल की रानी इस दिल की रजा हो
मोहब्बत में दर्द ही दर्द है न दिल को सजा हो।।
तुम्ही मेरी जिंदगी की जरूरी , इक़्तिज़ा हो
मन की मेहरबानियाँ और तुम वो इल्तिज़ा हो।।
©® premyad kumar naveen
Dist. Mahasamund (C.G)