मन की बात
मन मन की सब कोई कहे,
दिल की कहे ना कोई।
जो कोई दिल की कहे,
उसे सुनता नही है कोई।
मन पापी मन चोर है,
कहते चतुर सुजान।
दिल को आश्रय जान के,
बसते है भगवान।
मन उडता बिन पंख के,
छुअन चाहत आकाश।
दिल का प्रेम मार्ग सदा,
करते है सब विस्बास।
मन की पूरी कर ना सका,
राक्षस राज सम्राट।
दिल की पूरी हुई सदा,
राम गये शबरी की बाट।
मन मन की ही मत करो,
सुनो दिलो की बात ।
वरना मन की मन में ही रहेगी,
जब बिगड जायगी मन की बात।।
राजेश कौरव ” सुमित्र ”
बारहाबड़ा(म.प्र.)