मन की पीर
कुत्ता रोया रात भर ,
ले निज मन की पीर ।
अनहोनी का अर्थ दे,
धमका गया फकीर ।।
पत्ता गिरे बबूल से ,
घायल चीटी होय ।
ऊंट दहाड़ें मारता,
अब न बचेगा कोय।।
सही गलत के फेर में,
उलझा हुआ समाज ।
सत्य ठोकरें खा रहा,
झूँठ बना सरताज ।।
हवा चली चारों दिशा,
हुए अहाने फैल ।
कहाँ बची गोधूलि अब,
लुप्त हो गईं गैल ।।
जन की चिंता परे रख ,
लेकर धन की आस ।
दोनों दुश्मन प्रेम से ,
बैठ गए है पास ।।
पंछी उड़े तालाब से ,
नहीं बचा है नीर ।
नदी कह गई हाय रे,
मनुष हुआ बेपीर ।।