***मन की झोली **
।।ॐ परमात्मने नमः।।
शीर्षक ;- ” मन की झोली “
मन सुई के समान है जो मस्तिष्क में चल रहे तरंगो से कार्य प्रणाली को नियंत्रित कर जीवन के ताने बाने को बुनता रहता है एक दूसरे से जुड़कर कहीं न कहीं किसी भी रूप में आगे बढ़ने के लिये मन को केंद्रित करता है जब मन जीत जाता है और मन की झोली खुशियों से भर जाती है कहा भी गया है -“मन के हारे हार है और मन के जीते जीत ”
स्वाति पाँच भाई बहनों में सबसे बड़ी बेटी है पिताजी बैंक में ब्रांच मैनेजर थे बैंकों में चार साल बाद तबादला हो जाता था जिसकी वजह से सभी भाई बहनों की पढ़ाई स्कूल बदलने के चक्कर में परेशानी उठाना पड़ता था इसलिए स्थाई जगह पर सभी के पढ़ने की व्यवस्था कर दी गई थी।
स्वाति आठवी की परीक्षा देने के बाद माँ के साथ घर के कामों में हाथ बटाती और छोटे भाई बहनों की देखभाल करती क्योंकि पिताजी का तबादला हो जाता वहां चले जाते थे
एक दिन ताऊ जी का बेटा सुरेश घर आया उन्होंने स्वाति को घर के काम करते हुए देखा तो चाचा जी से पूछा स्वाति स्कूल नही जा रही है तो चाचा जी ने कहा – “ज्यादा पढ़ लिखकर क्या करेगी आगे भी यही चूल्हा चौका घर गृहस्थी संभालनी है वैसे भी हमारे परिवार में लड़कियाँ ज्यादा पढ़ी लिखी नही है “यह सुनकर सुरेश चौंक गये और स्वाति एक कोने में दुबक कर रोने लगी थी सुरेश बहन को रोते हुए देख समझाया फिर सुरेश ने चाचा जी से बैठकर बातें की कहने लगे अभी तो पढ़ने लिखने की उम्र है बाद में सभी को गृहस्थी तो संभालनी ही है अतंतः स्वाति के पिताजी आगे पढ़ने जाने के लिए राजी हो गए थे।
स्वाति ने आठवी क्लास का रिजल्ट आने के बाद नवमी में विज्ञान विषय ही लिया था हायर सेकेंडरी स्कूल तक पढाई पूरी करने के बाद स्वाति ने में सोचा कि अब विज्ञान विषय आगे चलकर नही पढ़ पायेगी फिर कॉलेज में कला संकाय विषय लेकर दाखिला लिया तीन साल बी. ए. स्नातक डिग्री हासिल की उसके बाद स्वाति ने समाचार पत्र में लेखन का कार्य शुरू किया कुछ रचनाएँ अख़बार में प्रकाशित हुई अब मनोबल बढ़ने लगा था रेडियो स्टेशन पर भी कुछ प्रोग्राम के द्वारा नई चेतना जागृत हुई प्रंशसा हौसला अफजाई से काम करने की क्षमता दोगुनी हो गई थी।
पुनः मन को समझाते हुए एम.ए. मनोविज्ञान स्नातकोत्तर महाविद्यालय से पढ़ने की ठानी लेकिन अंग्रेजी माध्यम से मन फिर से डांवाडोल होने लगा था परन्तु सहयोगी मित्रों के द्वारा संभव हो पाया था जैसे तैसे एम .ए. मनोविज्ञान की उपाधि प्राप्त हो गई नए सिरे से मन को परिवर्तित कर उस मुकाम पर पहुँच गई जहाँ गर्व महसूस करते हुए पिताजी कहने लगे मुझे तुम पर गर्व महसूस हो रहा है और हमारे परिवार में बेटियाँ इतनी आगे अभी नही बढ़ी है
बस कुछ दिनों बाद ही स्वाति की शादी हो गई आकाशवाणी रायपुर से उदघोषिका के हेतु साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था लेकिन शहर से दूर होने के कारण मन उदास हो गया था।बड़ी बेटी का जन्म होने के बाद शिक्षिका बनने की ललक जागी तो उन्होंने बीएड की डिग्री की मांग की बेटी के 2 साल होने के बाद बी.एड . की परीक्षा भी दिलाई प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर मन खुश हुआ अब स्वाति ने सोचा कोई भी कार्य असंभव नहीं है अगर मन में ये ठान लें जिद्द पकड़ लें करना ही है ……
ईश्वर ने भले ही हमें जैसा भी बनाया है सर्वगुण सम्पन्न तो किसी को नही बनाया है लेकिन कुछ न कुछ कर्मो से बेहतर साबित करने की कोशिश लगी रहती है
स्वाति ने आगे भी लेखन कार्यों में योगदान देती रही मन के तरंगो से लोगों तक अपनी बातों को पहुंचाने की प्रेरणा स्त्रोत्र बन गई ताकि मन इधर उधर भटकने ना लगे अंदर का बीज प्रस्फुटित हो इधर उधर मन भटकने ना लगे खुद को शुद्ध वातावरण में ढालकर आसपास मौजूद शक्तियों से “मन की झोली’ को खुशियों से सरोबार कर सके …..! ! !
स्वरचित मौलिक रचना ??
*** शशिकला व्यास ***
# भोपाल मध्यप्रदेश #