“मन की उड़ान “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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हम दूर गगन में उड़ जाते हैं ,
कभी अरुणांचल हो आते हैं !
झट से कश्मीर की घाटी का ,
हम विचरण कर आजाते हैं !!
आँखों से हिमांचल हटता नहीं ,
मौन पड़ा कुछ कहता नहीं !
काँगड़ा ने हमको मोह लिया ,
सपनों में भी कुछ कहता नहीं !!
लखनऊ को भला भूले कैसे ?
अदब सिखाया हमको ऐसे !
सरजमीं उसकी याद आती है ,
फिर उसको हम देखें कैसे ?
झांसी की फिर याद आगयी ,
अंगों में फिर प्राण आ गया !
रानी को हम नमन किये ,
ध्यानचंद जी का नाम लिया !!
पहुँच गए हम पुणे क्षण में ,
यादें हमारी खिल सी गयी !
लेजिम डांस वहां का सुन्दर ,
गणपति पूजा फिर होने लगी !!
मन तो बड़ा चंचल होता है ,
कभी यहाँ रहे कभी वहां रहे !
सुने में जब कुछ नहीं मिलता ,
तब मन अपनी कोई बात कहे !!
अरुणांचल से आसाम करीब ,
मन को हम ना रोक सके !
पहले दूर देश जा के हम तो ,
राह में हमको ना टोक सके !!
यह मन जाने ना कोई जान सके ,
मन की उड़ान ना पहचान सके !
कभी उड़ जाये कभी उछल जाये ,
कहना किसी की ना मान सके !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड