मन्थन-चिन्तन
जितना करते मन्थन-चिन्तन
बढ़ती जाए मेरी उलझन
यूँ तो पुष्प भरी है डाली
सूना सूना लागे आँगन
मान गए कष्टों में जीकर
दुःख की परिभाषा है जीवन
बस ना पाया नगर हिया का
जब से उजड़ गया मन उपवन
जितना स्वयं को मैं सुलझाऊँ
बढ़ बढ़ जाये मेरी उलझन
जितना करते मन्थन-चिन्तन
बढ़ती जाए मेरी उलझन
यूँ तो पुष्प भरी है डाली
सूना सूना लागे आँगन
मान गए कष्टों में जीकर
दुःख की परिभाषा है जीवन
बस ना पाया नगर हिया का
जब से उजड़ गया मन उपवन
जितना स्वयं को मैं सुलझाऊँ
बढ़ बढ़ जाये मेरी उलझन