*** ” मनोवृत्ति…!!! ***
” जरा सा मन बहकता है मेरा..
बस चले आता हूँ मैं यहाँ…!
कुछ ख़्वाब-ख़्यालों से मेरा..
बस मन संवर जाता है यहाँ…!
इरादा है कुछ..
बहुत दूर तक चले जाने का…!
मस्ती भरे मौसम में..
कुछ घुल-मिल बिसर जाने का…!
पर..
ये ठहराव है कि…
जो जकड़ लेता है कस के मुझे…!
कुछ राग अपनों के सपनों की..
अपनों में समेट लेता है मुझे…!
थोड़ा थक सा जाता हूँ अब मैं..
कुछ यक़ीन करो…
इसलिए दूर निकलना छोड़ दिया है…!
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अब..
मैंने पूरा चलना ही छोड़ दिया है…!
मसला ये है कि..
हम वाक़िफ है…
ये फासले अक्स़र रिश्तों में.. ,
कुछ अजीब-सी दूरियाँ बढ़ा देते हैं…!
पर..
ऐसा भी नहीं है कि अब…
मैंने अपनों से मिलना ही छोड़ दिया है…! ”
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छ.ग.)
११ / १२ /२०२२