*मनुज ने मगर न सीखा 【कुंडलिया】*
मनुज ने मगर न सीखा 【कुंडलिया】
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दीखा जंगल में मधुर ,सतयुग वाला काल
चिड़िया बैठी पीठ पर , हिरनी मालामाल
हिरनी मालामाल , राग बंधुत्व सुनाते
हिरनी करती दौड़ , मुदित पक्षी मस्ताते
कहते रवि कविराय ,मनुज ने मगर न सीखा
अविरल ईर्ष्या – बैर ,शहर – गाँवों में दीखा
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मुदित = प्रसन्न
अविरल = निरंतर
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451