मनहरण घनाक्षरी
घनाक्षरी छंद
कलकल छल-छल,बह रहा वेग साथ,
निर्मल पवित्र अति ,सरयू का नीर है।
हरे- भरे तरु दिखें ,भ्रमर पराग पिएँ,
नृत्य करें केकी झूम,गाए पिक, कीर है।
सजी-धजी खड़ी आज,करके सिंगार खूब,
लगती अयोध्या जी की,बदली तस्वीर है।
बन रहा भव्य नव्य,धाम प्रभु राम जी का,
रघुकुल तिलक की,मिटी सारी पीर है।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय