मनमोहन छंद विधान ,उदाहरण एवं विधाएँ
मनमोहन छंद 14 मात्रा (8+6) पदांत नगण
चारों चरण या दो- दो चरण समतुकांत
सही विधान- अठकल +किसी भी तरह का त्रिकल + नगण अर्थात पदांत 111 )
कुछ विद्वान कवि , अठकल की यति के बाद शेष छक्कल , चौकल +द्विकल के रुप में इस तरह आ रहा हो कि चौकल का अंतिम वर्ण लघु हो व द्विकल दोनों लघु हो | उसको मान्य करते है , आशय वही निकला कि चरणांत नगण 111 हो | और मैं भी इस पर असहमति नहीं देता हूँ , यदि कवि का सृजन लय में जरुरी लग रहा है , तब आपत्ति नहीं है
(इसको द्विगुणित करने पर स्वाभाविक रुप से महा मनमोहन छंद कहलाएगा )जिस तरह शृंगार छंद का द्विगुणित महा शृृंगार छंद कहलाता है ,
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मनमोहन छंद
रावण जैसी जहाँ हपस |
उसकी लंका सहे तपस ||
जलकर होगी खाक जरुर |
मद का उतरे सभी शरुर ||
सच्चे की है बात अलग |
झूठाँ होता अलग-थलग ||
आँखें जाती वहाँ झलक |
करें इशारा वहाँ पलक ||
सच्चा होता जहाँ कथन |
मानव करता वहाँ मनन ||
खिलता उपवन बने चमन |
जग करता है वहाँ नमन ||
छिपा न रहता किया गबन |
अधिक चले मत कभी दमन ||
संत बोलते सत्य वचन |
सदा झूठ का करो हवन ||
जिसका होता हृदय सरल |
पी जाते है सदा गरल ||
उन पर होता नहीं असर |
करते रहते गुजर – बसर ||
सुभाष सिंघई
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(मुक्तक )मनमोहन छंद , 14 मात्रा (8+6)
( किसी भी तरह का अठकल +किसी भी तरह का त्रिकल + नगण अर्थात पदांत 111 )
जो करते है सदा नकल |
नहीं लगाते वहाँ अकल ||
मूरख बनकर करें गुजर ~
काम हमेशा चले धकल |
जो करते है घात अमल |
खिले न घर में कभी कमल |
काँटो की ही उगे फसल ~
रहते है वह हृदय मसल ||
करता दानी सदा पहल |
मंदिर मस्जिद करे चहल |
सृजन हमेशा करे निरत ~
जन सेवा को तजे महल |
सुभाष सिंघई
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🍒💐शारदे वंदना💐🍒
मनमोहन छंद ( अठकल + त्रिकल + नगण ) √
मात् शारदे तुझे नमन |
रहे वतन में सदा अमन ||
मन से निकले यही कथन |
भारत हरदम रहे चमन ||
माता तेरा करूँ भजन |
चरणों में नित रहूँ मगन ||
पूजा तेरी करे कलम |
छाए गहरा निकट न तम ||
वीणाधारी वस्त्र धवल |
पावन तेरे चरण कमल |
छंद रचूँ मैं सदा नवल |
कह सुभाष अब दास चपल ||
सुभाष सिंघई
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मनमोहन छंद ( 8- 6 ) पदांत नगण 111 √
अच्छी होती , नहीं कलह |
लोग लड़े भी, बिना बजह ||
अपना-अपना , कहें कथन |
खुद ही अपना , करें नमन ||
बनते जग में , सभी सरल |
भरें हृदय में , खूब गरल ||
नहीं पराया , करें सहन |
मन में रखते , सदा जलन ||
साधू होते , निर्मल जल |
उनके होते , सुंदर पल ||
राग द्वेश से , दूर बचन |
अमरत उनके , सदा कथन ||
सुभाष सिंघई
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मनमोहन छंद ( 8- 6 ) पदांत नगण 111 (मुक्तक )√
खल करता है , जहर वमन |
कुढ़ता रहता , रखे जलन |
ज्वाला भीतर , रखे दहक ~
उसका होता, नहीं शमन ||
जो होती है , बात सहज |
दुर्जन खाएं , वहाँ मगज |
बात घुमाता , करे चुभन –
बिन पानी का , दिखे जलज |
बात निराली , दिखे अलग |
नहीं सत्य से ,कभी बिलग ||
दर्शन जिनका सत्य सहज –
उनका करता , दर्शन जग |
सुभाष सिंघई
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मनमोहन छंद ( 8- 6 ) पदांत नगण 111
अधिकारों का , जहाँ हनन |
उन्नति करता , नहीं वतन |
यश उन्नति का , जहाँ बिगुल |
देश बने वह , सदा मुकुल ||
आर पार की बात प्रखर |
आगे पीछे नहीं जहर ||
सत्य सदा ही करे चमक |
पुष्प छोड़ते सदा महक ||
आज सामने छंद महल |
करता नूतन सदा पहल ||
मित्र जुड़े सब करे सृजन |
चिंतन करते करे मनन ||
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मनमोहन छंद(गीतिका ) अदांत गीतिका
करते रहना बात अमन |
पास खिलेगा सुखद चमन |
लोग भरोसा करे सहज,
यश पायेगा, निजी कथन |
मन दर्पण हो जहाँ सरल ,
अमरत बनते वहाँ वचन |
ज्ञानी है अनमोल जगत ,
मिलता उसको सदा नमन |
मेहनत का है जहाँ दखल ,
सोना खिलता सहे तपन |
सुभाष सिंघई
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मनमोहन छंद (गीत )
जहाँ घास का करें बजन |
नहीं वीरता काम सजन ||
करते रहते सदा दखल |
खूब लगाते निजी अकल ||
सदा तोड़ते बना महल |
करते रहते चहल- पहल ||
लड़वाने को कहें वचन |
नहीं वीरता काम सजन ||
बेतुक गाते सदा गजल |
मुख से निकले फटी हजल ||
चौखाने को कहें त्रिकल |
करें ढ़िढ़ोरा द्वार निकल ||
देते सबको खूब तपन |
नहीं वीरता काम सजन ||
ढींगे हाँके टहल-टहल |
हर कारज में करें दखल ||
उकसाने की करें पहल |
जाते मानव वहाँ दहल ||
करे सुभाषा यहाँ मनन |
नहीं वीरता काम सजन ||
सुभाष सिंघई
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महा मनमोहन छंद
रख सुभाष अब हृदय विनय, प्रातकाल कर ईश नमन |
धोखा चोखा रखो समझ , जीवन होगा सुखद चमन ||
झूठा समझो यहाँ जगत , नहीं छोड़ना कभी भजन |
उसकी रहमत करे सफल , राह मिलेगें सरल सजन ||
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(इस छंद में ” उसकी रहमत पाकर चल ” कर सकते थे , – पाकर चल ( पाक +र + चल = यति या पदांत नगण 111 ही बनता )
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महा मनमोहन छंद( मुक्तक ) ,
जिनके कारज करें अमन , वह होता है सदा सरल |
शिव शंकर वह बने सहज , पी जाता है सभी गरल |
देता है वह उदाहरण , अपनाता है आकर जग ~
अपनी रखता बात महज , जो लगती है सभी तरल |
तीसरे चरण में ” आकर जग ” भी एक त्रिकल व एक त्रिकल नगण बना रहा है , आप अपने सृजन में ऐसा संयोग आने पर प्रयुक्त कर सकते है
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महा मनमोहन छंद(गीतिका )
स्वर – आ , पदांत महल
बजी ईंट से ईट दहल , फिर भी मानें खड़ा महल |
पत्थर जिसके करे टपक , वह कहता है कड़ा महल |
गरल सींचते खड़ी फसल, पुस्तक रखने नहीं रहल |
उनकी लीला दिखे अजब , कहते मेरा जड़ा महल ||
झूँठ बोलते बात सहज , जिनको कोई नहीं गरज ,
बिखरे कंकण जहाँ दखल ,वे कहते है मड़ा महल |
धूल धूसरित जहाँ अकल , जिस पर होते वार सहज ,
दिखे नही कुछ चहल पहल , वह कहते है लड़ा महल |
अपने स्वर को कहें गजल , जिनकी बोली नहीं सरस ,
बेमतलब की करें टहल , बीच राह में गड़ा महल |
सुभाष सिंघई
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सुभाष सिंघई
आलेख उदाहरण ~ #सुभाष_सिंघई , एम. ए. हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र , निवासी जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०