*** ” मनचला राही…और ओ…! ” ***
* कटनी तक , बिलासपुर से ;
ट्रेन का एक सफ़र था।
मौसमी बारिश की ” फुहार ” ,
और मस्तमय क़हर था।
ट्रेन की चाल , औसत से ;
कुछ अधिक , गतिमय था ।
गतिमान ट्रेन में , एक ठहराव आया ;
शायद…!
” करगीरोड कोटा ” स्टेशन था।
एक मेरा मन मतवारा ,
और खिड़की पर बैठा , मैं आवारा।
कुछ दूर.. ,
पत्थरों की ढेर बनाती ;
खूबसूरत एक हसीना नजर आया।
देख हसीना.. ,
मैं बहुत इठलाया ;
पवन प्यारे ने भी मुझे और उकसाया।
मन में.. ,
कुछ शरारती विचारों का उद्गार हुआ
फिर मेरे… ,
तिरछी निगाहों का प्रहार हुआ।
और….
एक बार नहीं , बारंबार हुआ।।
कुछ आंतरिक अंतरंग से ,
एक ” विकार भाव ” उद्भव ” हुआ।
फिर मन-अंबर में… ,
सपनों का बरसात हुआ।
** अनचाहे निगाहों से ,
उसने एक नज़र मुझ पर डाला।
अंतर्मन मेरा , मस्त हो गया ;
जैसे कोई पागल मतवाला।
कह गई ओ..,
अपने इरादे ;
कर गई कुछ अनचाहे वादे।
दे गई एक सुहाने सपने…,
और कैद कर ली मुझे ;
नज़रों में अपने ।
पढ़ न सका मैं…,
नज़रों की पाठ ;
और..
कर डाला अजनबी दिल पर कुठाराघात।
ओ मेरे… ,
मनचले मन का मरम था ,
मेरे विकृत विचारों का भरम था।
थी वह… ,
मंजिलों की रानी ;
वक्त की बेवस़ी में… ,
बन गई पत्थर की बहुरानी।
नज़रों में कस़क थी… ,
जवाब उसकी , अजब-गजब थी ।
” हूँ मैं.. , आज हालातों की मारी ; ”
” कल तक थी महलों की प्यारी । ”
” मैं तेरी आशाओं की नारी.., ”
” न कर मुझे..,
आज अपने नजरों से ब्यभीचारी। ”
*** ऐ अजनबी राहगीर ,
नजरों से नज़र पहचान ले।
मेरी अंतर्मन और ,
त्रासित तन को जान ले।
करना नहीं तू कभी , ऐसी भूल ;
ओ मेरे मतवाले राही।
मेरी नज़र में है… ,
जीवन के विवशता धूल ;
मैं हूँ तेरी… ,
पनाहों में बहती ,
प्रबल-अविरल माही।
केवल…..! ,
तू ही नहीं , अनेक हैं ;
ऐसी मस्ती में चूर ।
शायद…..! ,
” जीवन ” की ,
अज़ब यही है दस्तूर।
शायद……! ,
” जीवन ” की,
अज़ब यही है दस्तूर।
” क्या ..? , नारी होना ही , मेरी है कसूर । ”
” क्या…? , नारी होना ही , मेरी है कसूर । ”
***************∆∆∆***************
* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छ.ग.)