मनखी दिख़्ये पर मनख्यात नी छै | गढ़वाली कविता | मोहित नेगी मुंतज़िर
मनखी दिख़्ये पर मनख्यात नी छै
पुराणा गढ़वळि वा जात नी छै
गौं गोलूं मां क्वा का त अबी भी छा
पर पैल्या मनखी वाली स्या बात नी छै
दयखण भाल्न कु रंग भी स्वी छौ
पर ढंग बदल्येगी छौ
गढ़वालीपन उबड़ी गी छौं
अर संग भी बदल्येगी छौ
संग भी बदल्योणे छौ
क्वी बात नी छै
मनखी दिख़्ये पर मनख्यात नी छै
पुराणा गढ़वळि वा जात नी छै।