*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
17/11/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
वो अधिकार जताते हैं, उनके ही हैं सिर्फ हम, शून्य रहा कर्तव्य।
अपनी ही जिद पर कायम, घिसेपिटे सब कर्म को, कहते है अब नव्य।।
है महज औपचारिकता, बढ़ी बीच की दूरियाँ, नहीं बचे कुछ श्रव्य।
मनमुटाव बढ़ते अब तो, पहले जैसा कुछ नहीं, पड़े अकेले हव्य।।
खींचातानी होती है, कौन बड़ा होने लगा, मैं हूँ या हो आप।
अब दोनों में युद्ध नया, अकसर होती बात कम, कौन सदा निष्पाप।।
कौन तीसरा सुलह करे, किसकी है हिम्मत यहाँ, वो हैं सबके बाप।
चलो अभी ये मान लिया, तुम जीते हर दाँव पर, रोको क्रियाकलाप।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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