*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
27/10/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
दीपोत्सव की बेला में, आज मिटा अंतः तमस, कर कोशिश हे मित्र।
अज्ञानी मन भटक रहा, तलाशता है दिव्यता, लगता बड़ा विचित्र।।
अब बुहार कलमष सारा, यही समय उपयुक्त है, बन जा परम पवित्र।
चारित्रिक सदा स्वच्छता, शुद्ध बुद्धि शृंगार कर, यह जीवन के इत्र।।
अपना दीपक स्वयं बनो, यही बुद्ध उपदेश है, अपनाओ यह सीख।
त्याग तपस्या से बढ़ता, जीवन का सौंदर्य है, ज्यों शक्कर हो ईख।।
हृदय द्रवित अति हो जाये, दृश्य मिले जब कारुणिक, जब भी सुनते चीख।
सत्य अहिंसा के पथ पर, अगर माँगना भी पड़े, घूम माँग ले भीख।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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