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17 Oct 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
17/10/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

जीने की रही लालसा, कई अधूरे कार्य थे, करना था सम्पन्न।
कल के चक्कर में छूटा, महा नीच है सोचता, पर अब मरणासन्न।।
पराक्रमी मैं कर लूँगा, बायें हाथों से इसे, काल लिया आच्छन्न।
भोग मोहवश मैं भूला, कर लूँ पहले पूर्ण तब, खाऊँगा मैं अन्न।।

निजी भेद मत कहना तू, कभी भरोसा मत करो, झूठे सब अपनत्व।
आज मित्र जो भी बनते, भेद तुम्हारा जानते, लेते हैं शिष्यत्व।।
स्वार्थ पूर्ण जब भी होगा, कर लेंगे वो शत्रुता, दिखलायें वीरत्व।
सत्य यही जीवनशैली, जिसने है अपना लिया, प्राप्त किया बुद्धत्व।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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