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1 Oct 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
01/10/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

मैं भारत का सेनानी, अद्भुत मेरी वीरता, ओजस्वी विक्रांत।
एक अकेला लड़ सकता, दुश्मन की हर फौज से, ऐसे शत दृष्टांत।।
अर्जुन का शौर्य शिखर हूँ, महाकाल गाण्डीव हूँ, कभी नहीं दिग्भ्रांत।
वीर शिवा बसते मुझमें, आल्हा की संतान हूँ, मैं ही शुचित निशांत।।

है हुंकार गगनभेदी, शिव का तांडव स्त्रोत मैं, ख्याति मिली दुर्दांत।
आँख लड़ाकर जो देखे, रक्तपान उनका करूँ, निश्चित उसी दिनांत।।
मातृभूमि का मैं रक्षक, शस्त्र सुसज्जित ही रहूँ, अतिशय हूँ संभ्रात।
योगनिष्ठ मेरा जीवन, कर्मपरायण सिद्ध हूँ, अमर पथिक कल्पांत।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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