**मलिया**(उबटन पात्र)
कुण्डलिया–
मलिया,बुकुवा-तेल बिन,झंखत बाटे आज।
जेके समझि नुमाइसी,रखले हवे समाज।
रखले हवे समाज,साथ में बा कजरौटा।
अब ना ओकर पूछ,दिठौरी बिना मुखौटा।
भइली आज अलोप,मोनिया दउरी डलिया।
पूछे नवका लोग,हवे का बुकुवा काजर मलिया।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**