मत्तगयंद सवैया
दोस्तों बहनों का सदैव स्वागत
है बहना मन की अति सुंदर, कोमल है व्यवहार निराला।
मान लिया लड़ती मुझसे पर, प्रेम मिला उससे अति आला।
अग्रज हूँ यह धर्म निभे बस, हो न कभी उर में कछु काला।
नित्य करूंअभिनंदन मैं अब, देख रहा वह ऊपर वाला।।
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’