*मति हर ली थी कालचक्र ने, मन में थोड़ा पाप आ गया (हिंदी गजल/ गीतिका)*
मति हर ली थी कालचक्र ने, मन में थोड़ा पाप आ गया (हिंदी गजल/ गीतिका)
_________________________
1
मति हर ली थी कालचक्र ने, मन में थोड़ा पाप आ गया
चले बेचने थे तप अपना, मानो कोई शाप आ गया
2
यह तो हमें बचाने वाले ईश्वर का उपकार रहा था
मरण-मार्ग पर जो हितचिंतक धरे रूप चुपचाप आ गया
3
पढ़े-लिखों की उस बस्ती में लापरवाही का फल यह था
उनकी बस्ती का प्रतिनिधि ही चुन अंगूठाछाप आ गया
4
जिन से काफी उम्मीदें थीं, किंतु उन्हें जब हमने परखा
असली-नकली फूलों जैसा, अंतर अपने आप आ गया
5
चौपट-राज चल रहा है यह, बचकर ही रहिएगा थोड़ा
फंदे में फॅंस जायेंगे, फिट अगर गले का नाप आ गया
—————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451