मणिपुर की वेदना
बेज़ार रो रहा है देश महसूस कर मणिपुर की वेदना,
पर ‘उनको’ महसूस नहीं होता, खो चुके हैं संवेदना।
बस्ती के साथ मानवता भी जल रही है,
सत्ता की हवस घिनोने दौर में चल रही है।
पागल ‘ओ’ अंधा हो गया है निज़ाम अहंकार में,
जलती आग ना पैरों में दिखती है ना पहाड़ में।
पावर का नशा विवेकहीन और अंधा बना देता है,
अहंकार सिर चढ़ बोलता है और बुद्धि हर लेता है।
धकेला जा रहा है अंधे कुएँ की ओर देश को,
हर हाल में रोकना होगा इस अंधी रेस को।
आज संसद में अजीब ही नजारा था,
मुद्दे को छोड़ कर हर ज़िक्र गवारा था।
अहंकार में जैसे अपना ज़मीर बेच खाया हो,
हर कोई कविता पढ़ रहा था जैसे मुशायरे में आया हो।
खजान सिंह नैन
12-08-2023