मजबूर मजदूर
ये सड़को पे जो ,इस तरह जा रहे है ।
किस जुर्म की ये सजा पा रहे हैं । ।
यकीं था इन्हें हम सबल राज्य में हैं ।
निश्छल निपुण नृप के राज्य में हैं ।
देखेगा घावों को उम्मीद में हैं ।
इसी आस में ये चले जा रहे हैं ।
ये सड़को पे जो इस तरह जा रहे हैं ।
किस जुर्म की ये सजा पा रहे हैं ।
संकट के बादल कैसे ये छाए ।
अपना ये दुखड़ा किसको सुनाए ।
खुशियों को लेने शहर थे ये आये ।
गम की गठरी लिए जा रहे है ।
ये सडकों पे जो इस तरह जा रहे हैं ।
किस जुर्म की ये सजा पा रहे हैं ।
– जय श्री सैनी ‘सायक’