मजबूर मजदूर
दरबार मे जिनके अरमान ,
औरों से थोड़े थे ।
सजा पा रहे वो ज्यादा ,
जो गुनहगार थोड़े थे ।
हालातों ने कुछ इस तरह
इनका साथ निभाया ।
व्यय हुई सारी दौलत ,
जिंगदी भर जो भी जोड़े थे ।
वक्त ने कुछ नया सिखाया
मेहनत के कर्मक्षेत्र में …
पेट के लिए लड़ रहे थे
पेट आज बिना निवाले थे ।
अश्कों से पूरित नयन,
रहनुमाओं को निहारते ,
असली भगवान मानते
श्रद्धा से हाथ जोड़े थे ।
दरबार मे जिसके अरमान ,
औरों से थोड़े थे ।
सजा पा रहे वो ज्यादा ,
जो गुनहगार थोड़े थे ।
-जय श्री सैनी ‘सायक’