मजबूरी नहीं जरूरी
मजबूरी नहीं जरूरी
“अरे सर आप भी, कहीं मैं नींद में तो नहीं हूं।” सुबह-सुबह साइकिलिंग करते हुए अपने बैंक के मैनेजर साहब को देखकर उनके क्लर्क रमेश ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
“नहीं रमेश, तुम बिल्कुल भी नींद में नहीं हो। आज से मैं भी आप लोगों के साथ रोज सुबह साइकिलिंग करने आया करूंगा।” मैनेजर साहब ने कहा।
“वाओ ! अमेजिंग सर। तब तो बहुत मज़ा आएगा, यदि आप भी रोज हमारे साथ आया करेंगे। लेकिन यूं अचानक आपका मूड साइकिलिंग के लिए कैसे…” असिस्टेंट मैनेजर ने पूछ ही लिया।
“मजबूरी है भाई।”
“मजबूरी… कैसी मजबूरी सर ?”
“अरे भाई, आप लोग तो जानते ही हैं कि बढ़ती तोंद के कारण मैं कितना परेशान था। 10-12 दिन पहले मेरी घुटनों में हल्का सा-दर्द होने लगा। कुछ दिन मैंने नज़रअंदाज़ किया, सोचा कि यह अपने आप ठीक हो जाएगा, पर जब हफ्ते भर बाद भी ठीक नहीं हुआ, बल्कि दर्द बढ़ने लगा, तो कल डॉक्टर से मिला। डॉक्टर ने बताया कि अब मेरी ढलती उम्र में इसका सही इलाज दवाई में नहीं, योगा, मॉर्निंग वॉक, साइकिलिंग में है। डॉक्टर ने कहा है कि प्रतिदिन सुबह कम से कम छः किलोमीटर मॉर्निंग वॉक या पंद्रह किलोमीटर की साइकिलिंग करने से तोंद के बढ़ने, घुटने के दर्द, सुगर, हार्ट, ब्लड प्रेशर, किडनी, अनिद्रा, अपच जैसी अनेक बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है। सो फ्रैंड्स लेट्स स्टार्ट।” मैनेजर साहब ने बताया।
“सर, तब तो साइकिलिंग मजबूरी नहीं, जरूरी है।” साथ में चल रहे उनके एकाउंटेट ने मुस्कुराते हुए कहा।
“सो तो ठीक है सर, पर साइकिल में ये थैला क्यों लटकाए हैं ?” साथ चलने वाले एक अन्य सहकर्मी ने पूछा।
“ये थैला, अरे भाई, फिलहाल तो इसमें पानी की बोतल है, पर इसका एक उपयोग और भी है ?” मैनेजर साहब ने बताया।
“और क्या उपयोग हो सकता है सर ?” सहकर्मी ने पूछा।
“अरे भाई, मैडम ने आज घर से निकलते समय ये थैला टिकाते हुए कहा है कि आते-जाते सुबह-सुबह रास्ते में कई सब्जी और फल वाले भी दिखेंगे, तो ताजी सब्जियां और फल वगैरह लेते आना। अब मैडम जी का आदेश…।”
मैनेजर साहब की बात सुनकर सब ठहाके मारकर हंसने लगे।
– डॉ प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़