मजदूर हूँ मैं
ऊंची इमारत की जान हूँ ,
दो हाथ पैरों का इंसान हूँ ।
मेहनत मेरी इबादत
मैं खुद ही भगवान हूँ ।
जो भी मानव निर्मित ,
उन सबकी मैं पहचान हूँ ।
मैं हर जगह मिलता ,
जरूरत का सामान हूँ ।
सियासत मुझ पर चलती
मैं ही इसकी दुकान हूँ ।
तेरी तरक्की के पीछे ,
मैं विजय घोष गूँजमान हूँ ।
पीछे मुड़कर देख मुझे भी ,
मैं मजबूर मजदूर परेशान हूँ ।।
जय श्री सैनी ‘सायक’