मजदूर की व्यथा
मजदूर की व्यथा
नैतिकता को कुचल कर,पूँजीवाद निहाल।
कैसे शोषक वर्ग की,होगी बंद कुचाल??
मानवता के हनन का,कैसे होगा अंत?
मौन पड़े सब लोग हैं,सदा निरुत्तर संत।।
श्रमिक-गरीबों का रहा,है लम्बा इतिहास।
शोषित वर्ग समाज का,सदा हुआ उपहास।।
इनके प्रति संवेदना,दिखी सदा मृतप्राय।
नहिं उदारता के लिए,कुछ भी यहाँ उपाय।।
मजबूरी मजदूर की,खून पसीना एक।
करता रहता रात-दिन,फिर भी कभी न नेक।।
मालिक लेता काम है,हृदय शून्य अंदाज।
श्रमिकों का हक छीनकर,बनता है सरताज़।।
मजदूरी से पेट भर,श्रमिक सदा बदहाल।
दिन भर करता काम है,किंतु नहीं खुशहाल।।
सिर पर रखता बोझ को,ढोता है दिन-रात।
यही नियति मजदूर की,सहता है आघात।।
श्रमिकों के प्रति वेदना,कहाँ किसी के पास?
शोषणकारी भावना,करे सदा उपहास।।
श्रमिकों को मानव समझ,वे हैं दैवी शक्ति।
अपना भाई समझकर,मन में रख अनुरक्ति।।
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।