मजदूर (कर्म पुजारी)—डी. के. निवातियाँ
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
उठ चलता हूँ रवि संग
हर पल ताप सहता हूँ
भूख तृष्णा मेरे दोस्त
जीवन भर संग रहता हूँ
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
कर्म पथ पर चलना धर्म
अनुबंध ताउम्र निभाता हूँ
सुख दुःख हो लाभ हानि
मंद मुस्कान से जी जाता हूँ !!
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
मुझ से ही बने जो धनाढ्य
उनके हाथो दुत्कारा जाता हूँ
रहता हूँ मस्त मलंग कुछ में
नहीं ज्यादा को हाथ फैलाता हूँ
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
अग्नि, वायु, सागर, शिला भेद
हर शै: में खुद की राह बनाता हूँ
रखता हूँ अदम्य साहसिक बल
कर्मपूजा में अपना लहू चढ़ाता हूँ !!
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
निर्धन हूँ मैं धन से तो क्या
अंतर्मन से बड़े दिल वाला हूँ
हूँ मंजिल से अनजान तो क्या
जग की राह मैं बन जाता हूँ !!
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
मेरी मेहनत के पसीने से
बने तुम्हारे महल चौबारे
मठ, मजार, मंदिर, मस्जिद
गिरिजाघर और गुरुद्वारे
मैंने खुद को खोया इनमे
तब चमके ताज के गलियारे
किसने जानी मेरी कीमत
बस मिट्टी में खो रह जाता हूँ !!
क्यों देखे जग घृणा से, मैं नही कोई अत्याचारी हूँ !
दुनिया कहे मजदूर मुझे, पर मैं तो कर्म पुजारी हूँ !!
!
!
!
डी. के. निवातियाँ